Shree Neel Saraswati Stotram

 

त्रिदेवियों में देवी सरस्वती, महालक्ष्मी और महाकाली हैं. ये तीनों भी मां दुर्गा के विराट स्वरूप देवी भुवनेश्वरी के ही अंश हैं. इनमें देवी सरस्वती ज्ञान का प्रतीक हैं. उन्हीं का एक स्वरूप है नील सरस्वती. नील सरस्वती, रहस्य विद्या, मायाजाल और इंद्रजाल की देवी हैं.  

इसके अलावा संसार में जो योगमाया हैं वह भी उन्हीं का रूप हैं. मां सरस्वती को सुर, ज्ञान और कला में निपुण माना जाता है, वहीं नील सरस्वती को धन-धान्य की देवी भी कहते हैं. चैत्र नवरात्र का समय इनकी पूजा का सही समय होता है नवरात्र में देवी की पूजा महाविद्या स्वरूप में की जाती है. 

पौराणिक कथाओं के अनुसार, बसंत पंचमी के दिन ही भगवान शिव ने देवी पार्वती को धन-संपन्न की अधिष्ठात्री देवी होने का वरदान दिया था. इस कारण उनका वर्ण भी नीला हो गया था. इसके बाद से ही उन्हें नील सरस्वती के नाम से पुकारा जाने लगा.




श्री नील सरस्वती स्तोत्रम्

॥ श्री गणेशाय नमः ॥

घोररूपे महारावे सर्वशत्रुवशङ्करी ।
भक्तेभ्यो वरदे देवि त्राहि मां शरणागतम् ॥ १॥

सुराऽसुरार्चिते देवि सिद्धगन्धर्वसेविते ।
जाड्यपापहरे देवि त्राहि मां शरणागतम् ॥ २॥

जटाजूटसमायुक्ते लोलजिह्वानुकारिणी ।
द्रुतबुद्धिकरे देवि त्राहि मां शरणागतम् ॥ ३॥

सौम्यरूपे घोररूपे चण्डरूपे नमोऽस्तु ते ।
दृष्टिरूपे नमस्तुभ्यं त्राहि मां शरणागतम् ॥ ४॥

जडानां जडतां हम्सि भक्तानां भक्तवत्सले ।
मूढतां हर मे देवि त्राहि मां शरणागतम् ॥ ५॥

ह्रूं ह्रूंकारमये देवि बलिहोमप्रिये नमः ।
उग्रतारे नमस्तुभ्यं त्राहि मां शरणागतम् ॥ ६॥

बुद्धिं देहि यशो देहि कवित्वं देहि देहि मे ।
कुबुद्धिं हर मे देवि त्राहि मां शरणागतम् ॥ ७॥

इन्द्रादिदेव सद्वृन्दवन्दिते करुणामयी ।
तारे ताराधिनाथास्ये त्राहि मां शरणागतम् ॥ ८॥

॥ फलश्रुतिः ॥

अष्टम्यां च चतुर्दश्यां नवम्यां यः पठेन्नरः ।
षण्मासैः सिद्धिमाप्नोति नाऽत्र कार्या विचारणा ॥ १॥

मोक्षार्थी लभते मोक्षं धनार्थी धनमाप्नुयात् ।
विद्यार्थी लभते विद्यां तर्कव्याकरणादिकाम् ॥ २॥

इदं स्तोत्रं पठेद्यस्तु सततं श्रद्धयान्वितः ।
तस्य शत्रुः क्षयं याति महाप्रज्ञा च जायते ॥ ३॥

पीडायां वापि सङ्ग्रामे जप्ये दाने तथा भये ।
य इदं पठति स्तोत्रं शुभं तस्य न संशयः ॥ ४॥

स्तोत्रेणानेन देवेशि स्तुत्वा देवीं सुरेश्वरीम् ।
सर्वकाममवाप्नोति सर्वविद्यानिधिर्भवेत् ॥ ५॥

इति ते कथितं दिव्यं स्तोत्रं सारस्वतप्रदम् ।
अस्मात्परतरं नास्ति स्तोत्रं तन्त्रे महेश्वरी ॥ ६॥

हिन्दी अर्थ

❑अर्थ➠भयानक रूपवाली, अघोर निनाद करनेवाली, सभी शत्रुओं को भय प्रदान करनेवाली तथा भक्तों को वर प्रदान करनेवाली हे देवि! आप मुझ शरणागत की रक्षा करें।।१।।

❑अर्थ➠देव तथा दानवों के द्वारा पूजित, सिद्धों तथा गन्धर्वों के द्वारा सेवित और जड़ता तथा पापको हरनेवाली हे देवि! आप मुझ शरणागत की रक्षा करें।।२।।

❑अर्थ➠जटाजूट से सुशोभित, चंचल जिह्वा को अन्तर्मुख करनेवाली, बुद्धि को तीक्ष्ण बनानेवाली हे देवि! आप मुझ शरणागत की रक्षा करें।।३।।

❑अर्थ➠सौम्य क्रोध धारण करनेवाली, उत्तम विग्रहवाली, प्रचण्ड स्वरूपवाली हे देवि! आपको नमस्कार है। हे सृष्टिस्वरूपिणि! आपको नमस्कार है। मुझ शरणागत की रक्षा करें।।४।।

❑अर्थ➠आप मूर्खों की मूर्खता का नाश करती हैं और भक्तों के लिये भक्तवत्सला हैं। हे देवि! आप मेरी मूढ़ता को हरें और मुझ शरणागत की रक्षा करें।।५।।

❑अर्थ➠वं ह्रूं ह्रूं बीजमन्त्र स्वरूपिणी हे देवि! मैं आपके दर्शन की कामना करता हूँ। बलि तथा होम से प्रसन्न होनेवाली हे देवि! आपको नमस्कार है। उग्र आपदाओं से तारनेवाली हे उग्रतारे! आपको नित्य नमस्कार है। आप मुझ शरणागत की रक्षा करें।।६।।

❑अर्थ➠हे देवि! आप मुझे बुद्धि दें, कीर्ति दें, कवित्व शक्ति दें और मेरी मूढता का नाश करें। आप मुझ शरणागत की रक्षा करें।।७।।

❑अर्थ➠इन्द्र आदि द्वारा वन्दित शोभायुक्त चरणयुगलवाली, करुणा से परिपूर्ण, चन्द्रमा के समान मुखमण्डलवाली और जगत् को तारनेवाली हे भगवती तारा! आप मुझ शरणागत की रक्षा करें।।८।।

                                                                                    ॥ फलश्रुतिः ॥

❑अर्थ➠जो मनुष्य अष्टमी, नवमी तथा चतुर्दशी तिथि को इस स्तोत्र का पाठ करता है, वह छ: महीने में सिद्धि प्राप्त कर लेता है; इसमें सन्देह नहीं करना चाहिये।।१।।

❑अर्थ➠इसका पाठ करने से मोक्ष की कामना करनेवाला मोक्ष प्राप्त कर लेता है, धन चाहनेवाला धन पा जाता है और विद्या चाहनेवाला विद्या तथा तर्क-व्याकरण आदि का ज्ञान प्राप्त कर लेता है।।।।

❑अर्थ➠जो मनुष्य भक्तिपरायण होकर सतत् इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसके शत्रु का नाश हो जाता है और उसमें महान् बुद्धि का उदय हो जाता है।।।।

❑अर्थ➠जो व्यक्ति विपत्ति में, संग्राम में, मूढ़ अवस्था में, दान के समय तथा भय की स्थिति में इस स्तोत्र को पढ़ता है, उसका कल्याण हो जाता है; इसमें सन्देह नहीं है।।।।

❑अर्थ➠इस प्रकार स्तुति करने के अनन्तर देवी को प्रणाम करके उन्हें योनिमुद्रा दिखानी चाहिये।।५।।

इस प्रकार नीलसरस्वती स्तोत्र सम्पूर्ण हुआ।




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